चंदौली: स्वराज अभियान नेता व मजदूर किसान मंच प्रभारी ने राहत पैकेज पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मनरेगा मज़दूरों के लिए कोई पैकेज नही,काम ही नही होगा तो मज़दूरी कैसे मिलेगी?मज़दूरी दर का निर्धारण भी असंवैधानिक। अगर संवेदनशील न्यायपालिका होती तो स्वतः संज्ञान लेती क्योंकि केंद्र अथवा राज्यों की न्यूनतम मजदूरी कानून को नजरअंदाज किया गया है।
किसानों के लिये पूर्व घोषित पहली किश्त के ₹2000 को इसमें जोड़ दिया गया है। राजस्थान और दक्षिण के राज्यों की तरह मोटे अनाज के साथ तेल,मसाला आदि को जोड़ा नही गया है।महीना में एकमुश्त एक किलो दाल प्रति परिवार घोषित किया गया है।
जन धन योजना के खाताधारकों को 10000₹ देने की मांग पूरे देश में उठी थी।उसे तीन महीने में केवल ₹1500 किया गया है और वो भी केवल महिलाओं के लिए।
निर्माण मज़दूरों का एक छोटा हिस्सा ही निबंधित है,इसलिये यह लाभ बहुत कम मज़दूरों को मिलेगा।अगर मनरेगा में निबंधित मज़दूरों को इसमें जोड़ा जाता तो इसका लाभ बड़े पैमाने पर मज़दूरों को मिलता।
माइग्रेंट मज़दूरों की हालत बहुत ही दयनीय है,वो इधर-उधर फंसे हैं।वे भूखे-प्यासे मर रहे हैं और ऊपर से पुलिसिया डंडे खा रहे हैं।इनके लिये राहत पैकेज में कोई जगह नही है।
एक बड़ी आबादी किराए के मकान में रहती है।इसमें मज़दूर,छात्र और निम्न आय के मध्यवर्ग हैं,इन्हें भगाया जा रहा है लेकिन हमारी सरकार की घोषणा मौन है।
आशा,रसोइया,शिक्षा उत्प्रेरक समेत लाखों ऐसे कर्मी हैं जिन्हें या तो किसी तरह का कोई मासिक मानदेय नही है अथवा अति अल्प राशि मिलती है,इनके लिए कोई राहत पैकेज नही है।
सेल्फ हेल्प ग्रुप से देश में करोड़ों महिलाएं जुड़ी हैं,सभी आर्थिक/सामाजिक गतिविधियां बन्द होने की स्थिति में इन्हें तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत है;के लिए राहत पैकेज मौन है!इन्हें लोन देने की बात कही गयी है। दलित,आदिवासी,वंचित समुदाय के लिए केंद्र सरकार की घोषणाओं में कोई चर्चा नही है!